Sunday, December 25, 2011
From Real to Reel By: Subhash K Jha
Thursday, November 24, 2011
I have scratched every actor: Karisma Kapoor
TNN Nov 12, 2011,
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Thursday, November 10, 2011
Saturday, October 22, 2011
लंबे इंतजार ने दी दांपत्य को मजबूती: अंजना मुमताज-साजिद
बतौर मुख्य नायिका फिल्म महुआ, संबंध से सफर शुरू करकेहम हैं राही प्यार के , खुदा गवाह जैसी हिट फिल्में करने वाली अंजना मुमताज धारावाहिक बुनियाद से बेहद लोकप्रिय हुई। एयर इंडिया में कार्यरत साजिद से अंतर-धार्मिक विवाह किया और उसे शिद्दत से निभाया। शादी के बाद फिल्मों व देश को अलविदा कहा और बरसों बाद लौटीं तो ग्लैमर की दुनिया ने दिल से उनका स्वागत किया। शादीशुदा जिंदगी के एहसासों के बारे में अपने खयालात बांट रहे हैं ये दोनों सखी से। फिल्मी थी पहली मुलाकात अंजना: मैं मध्यवर्गीय मराठी परिवार की थी। मां की इच्छा और नृत्य-अभिनय की चाहत मुझे फिल्मी दुनिया में ले आई। हमारा मांजरेकर परिवार गोवा के मांजर गांव का रहने वाला है। साजिद कोलकाता के हैं। उनकी पढाई कैंब्रिज से हुई। मेरा परिवार कट्टर हिंदू तो साजिद का परिवार लिबरल मुस्लिम रहा है। साजिद: मैं इनसे मिला तो यह नहीं पता था कि ये फिल्मों में काम करती हैं। मैंने हिंदी फिल्में देखी ही नहीं थीं। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मैं एयर इंडिया में फ्लाइट सुपरवाइजर हो गया। कई तबादलों के बाद मुंबई आया। वीकेंड पर दोस्तों से मिलने जाता था। मेरे एक दोस्त की बहन की शादी अंजना के मामा से हुई है। मैं इस शादी में शरीक होने गया था। यहींखूबसूरत व बातूनी अंजना से पहली मुलाकात हुई और मैं इनका कायल हो गया। यह दौर 1970 का था। इन्हें देखकर सोचता था कि इतनी खूबसूरत हैं तो फिर मेकअप क्यों करती हैं। अंजना : साजिद से इसके बाद कई मुलाकातें हुई, लेकिन तब भी इन्हें पता नहीं था कि मैं फिल्मों में काम करती हूं। उन्हीं दिनों मेरी फिल्में संबंध व महुआ हिट हुई। सब बधाई दे रहे थे, लेकिन साजिद को समझ ही नहीं आ रहा था कुछ। बाद में पता चला कि बांग्ला संस्कृति उन पर इतनी छाई हुई है कि वे हिंदी फिल्में देखते ही नहीं हैं। एक मजेदार वाकया बताऊं। साजिद कोलकाता से मुंबई लौट रहे थे। ट्रेन में वक्त गुजारने के लिए किसी सहयात्री से फिल्मफेयर मैगजीन लेकर उसे पलटने लगे। उसमें मेरी तसवीर छपी थी। अगली बार मेरे घर आए तो पूछा, तुम्हारी ही फोटो फिल्मफेयर में छपी है? यह सुनकर घर में सभी हंसने लगे। अगली मुलाकात में इन्होंने कहा, शायद इसीलिए तुम मेकअप करती थीं। मुझे मालूम ही नहीं चला कि तुम फिल्मों में काम करती हो। साजिद: मेरे मामा गायक किशोर कुमार के दोस्त थे। मैं कभी-कभी किशोर कुमार के घर जाता था। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अंजना को जानते हैं? उन्होंने मुसकुराकर कहा, हां, वह तो मराठी-हिंदी-गुजराती फिल्मों की जानी-मानी कलाकार हैं। बाद में मैंने इनके बारे में मां को बताया। शुरू में तो वह नाराज हुई। मां प्रगतिशील विचारों वाली रही हैं। वह कोलकाता की एक बडी फर्म के मार्केटिंग विभाग में थीं। उन्हें हिंदू-मुस्लिम होने से फर्क नहीं पडता था, लेकिन वह बंगाली बहू चाहती थीं। हमारे घर में सारी बहुएं हिंदू हैं, लेकिन बंगाली इमोशन ज्यादा था। खैर वह अंजना से मिलीं और उन्हें अंजना पसंद आई। आठ साल का इंतजार साजिद : मां ने कहा, शादी करके घर बसा लूं। लेकिन अंजना के घर वाले एक मुस्लिम लडके को दामाद बनाने को राजी न थे। समाज व बिरादरी का भय उन्हें बहुत था। अंजना : उन्हें राजी करने के लिए मैंने 8 साल इंतजार किया। साजिद को ऑस्ट्रेलिया जाने का ऑर्डर आया तो उन्होंने कहा, शादी के बिना मैं तुम्हारा वीसा नहीं बनवा पाऊंगा। विदेश गया तो जल्दी लौट नहीं पाऊंगा। कहीं हम ऐसे ही बूढे न हो जाएं। हमने आखिरी कोशिश की और माता-पिता मान गए। 16 अप्रैल 1978 को मुंबई में हमने रजिस्टर्ड मैरिज की। शादी में 25-30 लोग थे। शादी का कार्ड नहीं छपवाया गया था। 24 घंटे में एक टेलर ने वेडिंग ड्रेस तैयार की, लेकिन दुपट्टा नहीं मिला। फिर दूसरी ड्रेस का दुपट्टा ओढा। किसी रिश्तेदार के टैरेस पर छोटा सा रिसेप्शन किया गया। डिनर का कोई इंतजाम नहीं था। अपेक्षाएं और चिंताएं साजिद: मेरे भीतर दुविधा थी कि कहीं ग्लैमर से घरेलू जीवन तो प्रभावित नहीं होगा। क्या अंजना में वाइफ मटीरियल मिलेगा? अंजना : क्या फरमा रहे हैं आप? शादी के इतने सालों बाद आप ये बातें शेयर कर रहे हैं? साजिद : मगर, अंजना ने शिकायत का मौका नहीं दिया। घर की जिम्मेदारियां इन्होंने बखूबी संभाली। शादी से पहले इन्होंने घर के काम नहीं किए थे। विदेशों में घरेलू हेल्पर जल्दी मिलते नहीं थे। सारे काम इन्हें खुद करने पडते। तबादलों से भरे खानाबदोश जीवन में भी इन्होंने निभाया। अंजना : शादी के बाद भी मैं पूजा-पाठ करती थी। हमारे घर में ईद व गणपति दोनों धूमधाम से मनाया जाता था। मैंने बंगाली, मुगलई, इंटरकॉन्टिनेंटल खाना बनाना भी सीख लिया। और दिल मिल गए साजिद : पति-पत्नी का रिश्ता यूं तो बेहद घनिष्ठ दिखता है, लेकिन जरा सी चूक इसे बिगाड सकती है। अंजना ने तो विशुद्ध उर्दू में मां को खत लिखकर उनका दिल जीता है। अंजना: उर्दू तो मीना कुमारी जी की संगत में सीखी। बचपन में मैं पंडित बिरजू महाराज जी से नृत्य सीखती थी। वे फिल्म पाकीजा की कोरियोग्राफी कर रहे थे। मैंने मीना जी से मिलने की इच्छा जाहिर की तो अगले ही दिन उन्होंने फिल्मिस्तान बुलाया, जहां इन्हींलोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा.. गाने की शूटिंग चल रही थी। उन्होंने मुझे सलाह दी कि पहले पढाई पूरी करूं, तभी फिल्में करूं। पहला ब्रेक मुझे कमाल अमरोही (मीना जी के शौहर) ने ही दिया। तब कौन जानता था कि आने वाले समय में यह उर्दू मेरे काम आएगी? सफल दांपत्य के सूत्र साजिद: हमने हमेशा एक-दूसरे को सहयोग दिया। जब भारत में होते थे, अंजना फिल्में पूरी करतीं और मैं बेटे को देखता था। अंजना: साजिद को फिल्म इंडस्ट्री से लेना-देना नहीं था, लेकिन उन्होंने मुझे सहयोग दिया। साजिद: मेरा मानना है कि जीवनसाथी के काम को भी सम्मान से देखना चाहिए। व्यक्ति के प्रोफेशनल जीवन को भी महत्व दिया जाना चाहिए। अपने प्रिय व्यक्ति के गुण-दोषों को स्वीकारना चाहिए। तभी प्यार की बेल बढ सकती है। हमारा स्वभाव बिलकुल विपरीत है, लेकिन अंजना को मैं बेपनाह मुहब्बत करता हूं। इंशा अल्लाह करता रहूंगा..। |
पूजा सामंत |
Saturday, June 25, 2011
Actor Ruslaan Mumtaz knows how to wear his style and never seems to go wrong with it.
1. Comfort is what rules my sense of style. No point walking about in trendy clothes and feeling out of place in them.
2. The right fit of clothes makes a lot of difference to the look.
3. Be confident about your attire — that will pull you through often.
4. You needn’t go flashy or over-the-top — keeping it very simple is a good idea.
5. The material should be apt for an occasion. For instance, one should never try wearing a sweatshirt to a beach party.
6. When confused, stick to white or black — you can never go wrong.
7. Big brands don’t necessarily mean the right sense of style. So, road side shopping is allowed.
8. A good watch, a pair of decent shades, matching belts and shoes are a must
9. Try experimenting with your hair and stubble — unknowingly they add to your style statement.
10. Finally, stay true to your personality.
— As told to Dipannita Ghosh Biswas, DNA
LINK:
Saturday, March 12, 2011
Guns & Jalebis
February 26, 2011 by FSJ
A Tip From Aamir Khan & The Dabangg Effect Sent Actor Ruslaan Mumtaz On A Trip That Changed Him Forever A First Person Account
As a child I travelled a lot with my parents, so globe-trotting and seeing different places was always a passion for me. We went on a vacation every year but I have surprisingly never really travelled within my own country.
When one of my friends told me that he was visiting his village in Uttar Pradesh, the success of Dabangg prompted me to ask him if I could tag along. Aamir Khan had once said that every actor should live in a village and the craze that Dabangg created inspired me to make this trip.
Aamir was right. My 11-day- stay in Bagahidarh village right next to Azamgarh has affected me as an actor and changed me as a person.
My initial decision was to fly to Benaras and travel by car to Azamgarh but if I wanted to experience the real India, I knew I had to abandon my luxuries and travel like the common man.
We travelled by train from Mumbai which took 34 hrs to reach Benaras. I had a great time on the train eating and playing cards all the way. Also adding to the entertainment were two small children role-playing Dabangg characters. Fighting about who would be Chulbul Pandey and who would be Chhedi Singh.
We reached Bagahidarh village at 2 am. I was made to sleep on a charpai and was told by my friend that since we reached so late in the night proper arrangements must not have been made. But to my surprise that was my sleeping arrangement for the rest of my stay. My morning started at 7 am with all the young boys from the house paying me a visit.
They were all waiting for me to wake up and seeing that I wasn’t going to do that soon, they all just sat in my room waiting for my eyes to open. I woke up to find six young boys staring at me, they were my friend’s cousins. From the age group of 8 to 28. I guess they wanted to see how an actor looks when he just wakes up. They were really fascinated seeing me do my morning exercises.
I was told I would have to bathe in the open at the tube well or water pump and I was a little nervous about that but once I wore my boxers I felt like Salman Khan from Dabangg. By the end of my trip I got completely used to people watching me have my daily bath. I’d smile or wink at my audience and they’d blush and run away.
My day would start with a glass of hot milk and jalebis. For breakfast I’d eat chappati and sabzi, so technically I’d eat two breakfasts. What we consider healthy in the city is in total contrast with what is called healthy in villages. Oil, ghee and butter are total no-nos for actors but in the village it’s considered really healthy.
I had to throw my diet in the bin and after a few meals I decided that if I wanted to enjoy my village stay I should forget I was an actor and just accept what was offered to me. In Mumbai I would never touch gulab jamuns but in the village they were served in really small matkas called kulhads and even the tea there was served in kulhads. Without fearing the wrath of Mumbaikars I must say that tea in a kulhad is way better than the cutting chai of Mumbai.
I will never forget the tikkis, pakoris and a sweet dish called laung latta that I ate here.
Every evening we’d walk through the sugarcane fields to reach the market and all the way we’d crack jokes about Dev D’s Paro and her bicycle ride into the fields with a mattress. Supposedly such things are common as young lovers cannot meet openly.
Notorious gangsters like Abu Salem were brought up in this little town and I did have the opportunity to meet such people. I was also gifted a gun which I obviously did not have the courage to accept. I discovered that Azamgarh houses factories that make guns which cost just `600 and most youngsters have one.
“Saw Aakrosh in a local theatre. The seats were all broken and the film looked like it was shot only at night. I could recognize the actors only by their voices!”
During random arguments these guns are used and that’s how most of the youth end up entering the underworld. Once they are in jail the local politician gets them out in exchange for their services. That’s why there is such a big nexus between politicians and the underworld, especially in UP and Bihar.
I visited the famous Shibli National College. Shabana Azmi has donated a beautiful girls’ hostel and looking at the building my respect for her grew 100 fold. Also met a few students who are involved in college politics and was reminded of Tigmanshu Dhulia’s Haasil.
Saw Aakrosh in a local theatre. Even though the ticket price was `50 the movie-watching experience was miserable. The seats were all broken and there were no seat numbers. Something was wrong with the projector and the film looked like it was shot only at night. Everything was dark.
Although the latest UFO technology was available the benefits did not reach the masses due to bad implementation. I could recognize the actors only by their voices.
Even then the theatre was house full and the audience was reacting to every dialogue, song and action sequence. This kind of audience reaction I had only seen once in a single screen in Mumbai and that was for Om Shanti Om. I am sure Aakrosh did not get the same reaction in Mumbai. This goes to show the kind of audience we have in the interiors and their passion for cinema, good or bad.
That one show also made me realise that the kind of acting I consider good will never be appreciated by the masses. They want drama and larger-than-life characters. They want a ‘hero’, someone they can cheer when he’s beating up the bad guy. They don’t want a wimp.
They don’t want underplaying. They want overacting and loads of style. I am sure my future films and acting style will be affected by this trip.
In 11 days I realized that the people in our villages are very emotional. They get attached and are loyal by nature. That’s why if an actor wins their hearts once, they will go and watch his films even in the worst possible conditions, even after having to pay a big amount of their hard-earned money.
In cities we do not respect movies that are made for the masses, movies that are loud with larger-than-life characters. Movies that don’t make sense to us, seem to make sense to them. I have realized that big cities are not the only audience.
My career choices henceforth have been altered. Will they be for the better or worse? I guess only time will tell.
Monday, January 17, 2011
Ruslaan dating Salma Agha's daughter
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