बतौर मुख्य नायिका फिल्म महुआ, संबंध से सफर शुरू करकेहम हैं राही प्यार के , खुदा गवाह जैसी हिट फिल्में करने वाली अंजना मुमताज धारावाहिक बुनियाद से बेहद लोकप्रिय हुई। एयर इंडिया में कार्यरत साजिद से अंतर-धार्मिक विवाह किया और उसे शिद्दत से निभाया। शादी के बाद फिल्मों व देश को अलविदा कहा और बरसों बाद लौटीं तो ग्लैमर की दुनिया ने दिल से उनका स्वागत किया। शादीशुदा जिंदगी के एहसासों के बारे में अपने खयालात बांट रहे हैं ये दोनों सखी से। फिल्मी थी पहली मुलाकात अंजना: मैं मध्यवर्गीय मराठी परिवार की थी। मां की इच्छा और नृत्य-अभिनय की चाहत मुझे फिल्मी दुनिया में ले आई। हमारा मांजरेकर परिवार गोवा के मांजर गांव का रहने वाला है। साजिद कोलकाता के हैं। उनकी पढाई कैंब्रिज से हुई। मेरा परिवार कट्टर हिंदू तो साजिद का परिवार लिबरल मुस्लिम रहा है। साजिद: मैं इनसे मिला तो यह नहीं पता था कि ये फिल्मों में काम करती हैं। मैंने हिंदी फिल्में देखी ही नहीं थीं। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मैं एयर इंडिया में फ्लाइट सुपरवाइजर हो गया। कई तबादलों के बाद मुंबई आया। वीकेंड पर दोस्तों से मिलने जाता था। मेरे एक दोस्त की बहन की शादी अंजना के मामा से हुई है। मैं इस शादी में शरीक होने गया था। यहींखूबसूरत व बातूनी अंजना से पहली मुलाकात हुई और मैं इनका कायल हो गया। यह दौर 1970 का था। इन्हें देखकर सोचता था कि इतनी खूबसूरत हैं तो फिर मेकअप क्यों करती हैं। अंजना : साजिद से इसके बाद कई मुलाकातें हुई, लेकिन तब भी इन्हें पता नहीं था कि मैं फिल्मों में काम करती हूं। उन्हीं दिनों मेरी फिल्में संबंध व महुआ हिट हुई। सब बधाई दे रहे थे, लेकिन साजिद को समझ ही नहीं आ रहा था कुछ। बाद में पता चला कि बांग्ला संस्कृति उन पर इतनी छाई हुई है कि वे हिंदी फिल्में देखते ही नहीं हैं। एक मजेदार वाकया बताऊं। साजिद कोलकाता से मुंबई लौट रहे थे। ट्रेन में वक्त गुजारने के लिए किसी सहयात्री से फिल्मफेयर मैगजीन लेकर उसे पलटने लगे। उसमें मेरी तसवीर छपी थी। अगली बार मेरे घर आए तो पूछा, तुम्हारी ही फोटो फिल्मफेयर में छपी है? यह सुनकर घर में सभी हंसने लगे। अगली मुलाकात में इन्होंने कहा, शायद इसीलिए तुम मेकअप करती थीं। मुझे मालूम ही नहीं चला कि तुम फिल्मों में काम करती हो। साजिद: मेरे मामा गायक किशोर कुमार के दोस्त थे। मैं कभी-कभी किशोर कुमार के घर जाता था। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अंजना को जानते हैं? उन्होंने मुसकुराकर कहा, हां, वह तो मराठी-हिंदी-गुजराती फिल्मों की जानी-मानी कलाकार हैं। बाद में मैंने इनके बारे में मां को बताया। शुरू में तो वह नाराज हुई। मां प्रगतिशील विचारों वाली रही हैं। वह कोलकाता की एक बडी फर्म के मार्केटिंग विभाग में थीं। उन्हें हिंदू-मुस्लिम होने से फर्क नहीं पडता था, लेकिन वह बंगाली बहू चाहती थीं। हमारे घर में सारी बहुएं हिंदू हैं, लेकिन बंगाली इमोशन ज्यादा था। खैर वह अंजना से मिलीं और उन्हें अंजना पसंद आई। आठ साल का इंतजार साजिद : मां ने कहा, शादी करके घर बसा लूं। लेकिन अंजना के घर वाले एक मुस्लिम लडके को दामाद बनाने को राजी न थे। समाज व बिरादरी का भय उन्हें बहुत था। अंजना : उन्हें राजी करने के लिए मैंने 8 साल इंतजार किया। साजिद को ऑस्ट्रेलिया जाने का ऑर्डर आया तो उन्होंने कहा, शादी के बिना मैं तुम्हारा वीसा नहीं बनवा पाऊंगा। विदेश गया तो जल्दी लौट नहीं पाऊंगा। कहीं हम ऐसे ही बूढे न हो जाएं। हमने आखिरी कोशिश की और माता-पिता मान गए। 16 अप्रैल 1978 को मुंबई में हमने रजिस्टर्ड मैरिज की। शादी में 25-30 लोग थे। शादी का कार्ड नहीं छपवाया गया था। 24 घंटे में एक टेलर ने वेडिंग ड्रेस तैयार की, लेकिन दुपट्टा नहीं मिला। फिर दूसरी ड्रेस का दुपट्टा ओढा। किसी रिश्तेदार के टैरेस पर छोटा सा रिसेप्शन किया गया। डिनर का कोई इंतजाम नहीं था। अपेक्षाएं और चिंताएं साजिद: मेरे भीतर दुविधा थी कि कहीं ग्लैमर से घरेलू जीवन तो प्रभावित नहीं होगा। क्या अंजना में वाइफ मटीरियल मिलेगा? अंजना : क्या फरमा रहे हैं आप? शादी के इतने सालों बाद आप ये बातें शेयर कर रहे हैं? साजिद : मगर, अंजना ने शिकायत का मौका नहीं दिया। घर की जिम्मेदारियां इन्होंने बखूबी संभाली। शादी से पहले इन्होंने घर के काम नहीं किए थे। विदेशों में घरेलू हेल्पर जल्दी मिलते नहीं थे। सारे काम इन्हें खुद करने पडते। तबादलों से भरे खानाबदोश जीवन में भी इन्होंने निभाया। अंजना : शादी के बाद भी मैं पूजा-पाठ करती थी। हमारे घर में ईद व गणपति दोनों धूमधाम से मनाया जाता था। मैंने बंगाली, मुगलई, इंटरकॉन्टिनेंटल खाना बनाना भी सीख लिया। और दिल मिल गए साजिद : पति-पत्नी का रिश्ता यूं तो बेहद घनिष्ठ दिखता है, लेकिन जरा सी चूक इसे बिगाड सकती है। अंजना ने तो विशुद्ध उर्दू में मां को खत लिखकर उनका दिल जीता है। अंजना: उर्दू तो मीना कुमारी जी की संगत में सीखी। बचपन में मैं पंडित बिरजू महाराज जी से नृत्य सीखती थी। वे फिल्म पाकीजा की कोरियोग्राफी कर रहे थे। मैंने मीना जी से मिलने की इच्छा जाहिर की तो अगले ही दिन उन्होंने फिल्मिस्तान बुलाया, जहां इन्हींलोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा.. गाने की शूटिंग चल रही थी। उन्होंने मुझे सलाह दी कि पहले पढाई पूरी करूं, तभी फिल्में करूं। पहला ब्रेक मुझे कमाल अमरोही (मीना जी के शौहर) ने ही दिया। तब कौन जानता था कि आने वाले समय में यह उर्दू मेरे काम आएगी? सफल दांपत्य के सूत्र साजिद: हमने हमेशा एक-दूसरे को सहयोग दिया। जब भारत में होते थे, अंजना फिल्में पूरी करतीं और मैं बेटे को देखता था। अंजना: साजिद को फिल्म इंडस्ट्री से लेना-देना नहीं था, लेकिन उन्होंने मुझे सहयोग दिया। साजिद: मेरा मानना है कि जीवनसाथी के काम को भी सम्मान से देखना चाहिए। व्यक्ति के प्रोफेशनल जीवन को भी महत्व दिया जाना चाहिए। अपने प्रिय व्यक्ति के गुण-दोषों को स्वीकारना चाहिए। तभी प्यार की बेल बढ सकती है। हमारा स्वभाव बिलकुल विपरीत है, लेकिन अंजना को मैं बेपनाह मुहब्बत करता हूं। इंशा अल्लाह करता रहूंगा..। |
पूजा सामंत |
Saturday, October 22, 2011
लंबे इंतजार ने दी दांपत्य को मजबूती: अंजना मुमताज-साजिद
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1 comment:
आज इस देश के लोगो को आप जैसो से सीखना चाहीए
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